महाराष्ट्र में शनिवार सुबह अचानक राकांपा विधायक दल के नेता अजित पवार के सहयोग से भाजपा सरकार बनाने में सफल हो गई. सुबह आठ बजे भाजपा विधायक दल के नेता देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और राकांपा नेता अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर सबको चौंका दिया. घटनाक्रम में एक और जबर्दस्त मोड़ तब आया, जब पार्टी मुखिया शरद पवार ने इसे अजित पवार का निजी फैसला बताते हुए कहा कि इसे राकांपा का समर्थन न माना जाए. इस बीच खबरों में कहा जाने लगा कि "चूंकि 30 अक्टूबर को सर्वसम्मति से अजित पवार राकांपा विधायक दल के नेता चुने गए थे, ऐसे में उनके समर्थन को राकांपा का समर्थन माना जा सकता है. विधायक दल के नेता के निर्णय के विरुद्ध जाने पर विधायकों पर दल-बदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई हो सकती है."
लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता इसे बेहद जटिल विषय बताते हैं. उन्होंने कहा कि सरकार गठन के बाद भी आगे राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष की अहम भूमिका रहेगी। मामला सुप्रीम कोर्ट भी जा सकता है. गुप्ता ने कहा कि "इस मामले के कई पहलू हैं. राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग द्वारा मान्यता दी जाती है. दल के अध्यक्ष द्वारा की गई अनुशंसा के अनुसार विधानसभा या लोकसभा प्रत्याशियों को पार्टी का चुनाव चिन्ह आवंटित किया जाता है. चुनाव जीतने के बाद पार्टी विधायक दल के नेता को सदन में मान्यता मिलती है, जिससे मुख्यमंत्री या नेता विपक्ष का चयन होता है. विधायक दल के नेता को व्हिप जारी करने का अधिकार होता है और जिसके उल्लंघन पर दल बदल विरोधी कानून लागू किया जा सकता है."